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कोरिया, छत्तीसगढ़।
क्या आपने कभी ऐसा जिला परिवहन अधिकारी (RTO) देखा है, जो पूरे संभाग का प्रभार तो रखता है, लेकिन अपने मूल कार्यालय में मुश्किल से ही दिखाई देता है? कोरिया जिले के वाहन मालिक और ड्राइवर इन दिनों इसी समस्या से जूझ रहे हैं, जहां एक अदृश्य RTO के चलते आम जनता को हर कदम पर एजेंटों और “बड़े बाबुओं” की चक्की में पिसना पड़ रहा है।


तीन जिलों का बोझ, एक अधिकारी की ‘अनुपस्थिति’

कोरिया, सूरजपुर और एक अन्य जिले की जिम्मेदारी एक ही RTO अधिकारी के पास है। लेकिन कोरिया जिले का RTO कार्यालय एक ‘बिना कप्तान का जहाज’ बन चुका है। अफसर शायद ही कभी कार्यालय में दिखते हैं, और जब भी कोई वाहन मालिक सीधे सहायता मांगता है, तो जवाब मिलता है — “साहब दूसरे जिले में हैं। आदेश लेकर आइए।”


💼 एजेंटों का साम्राज्य: बिना दलाल, कोई काम नहीं!

RTO कार्यालय में एक अघोषित नियम चलता है — “बिना एजेंट, कोई फिटनेस नहीं!”
वाहन मालिकों को मजबूरन एजेंटों के पास जाना पड़ता है, क्योंकि सीधे आवेदन करने पर फाइल या तो रोक दी जाती है या फिर बड़े बाबू द्वारा लौटा दी जाती है।

“आप साहब से साइन कराकर लाइए, तभी होगा फिटनेस!” — यही जवाब बार-बार दोहराया जाता है।

हालांकि गाड़ी के सभी जरूरी कागजात — पंजीयन प्रमाणपत्र, टैक्स पर्ची, बीमा और फिटनेस फॉर्म — पूरे रहते हैं, फिर भी अधिकारी का साइन तब तक नहीं होता, जब तक एजेंट न हो या… कुछ और?


📷 फोटो खींचने से पहले ही ‘खेल’ शुरू!

स्थानीय सूत्रों की मानें तो RTO परिसर में फिटनेस प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही ‘बड़े बाबुओं’ का खेल शुरू हो जाता है।

  • पहले बहाने बनाए जाते हैं: “गाड़ी साफ नहीं है”, “फॉर्म अधूरा है”, “फोटो नहीं हुआ” आदि।
  • फिर परोक्ष रूप से ‘अनौपचारिक शुल्क’ की मांग की जाती है — और यह सब एजेंट के माध्यम से तय होता है।

जैसे ही एजेंट सामने आता है, सब प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। फोटो, साइन, अप्रूवल — सब कुछ मिनटों में!


🧾 जनता की पीड़ा: ‘हमारी फाइलें सिस्टम में नहीं, दलालों के ब्रीफकेस में हैं!’

आम जनता का कहना है कि अब RTO कार्यालय एक ‘एजेंट संचालित सिस्टम’ बन चुका है, जिसमें ईमानदार व्यक्ति को केवल चक्कर काटने पड़ते हैं।

  • सीधा आवेदन करें, तो काम रुके।
  • एजेंट से जाएं, तो सब आसान।
  • और सबसे चिंताजनक — अधिकारी से मिलने का कोई तरीका नहीं।

📣 जनता की मांग: पारदर्शिता और जवाबदेही हो बहाल

स्थानीय वाहन मालिकों, ट्रांसपोर्टर्स और सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से निम्नलिखित मांगें रखी हैं:

  1. RTO अधिकारी की स्थायी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए।
  2. फिटनेस और निरीक्षण प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए।
  3. बिचौलियों पर रोक लगे, और आम जनता की सीधे सुनवाई हो।
  4. ऑनलाइन अपॉइंटमेंट और ट्रैकिंग सिस्टम को सख्ती से लागू किया जाए।
  5. जांच कमेटी गठित कर पूरे RTO कार्यप्रणाली की समीक्षा की जाए।

🧭 अफसर ‘तीन जिलों’ के, लेकिन जवाबदेही ‘शून्य’?

अगर एक RTO अधिकारी तीन जिलों का भार उठाकर भी किसी जिले में उपस्थित नहीं रह सकते, तो यह केवल ‘कार्यभार’ का मामला नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही की गंभीर चूक है।
सरकार ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ की बात करती है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कोरिया जैसे जिलों में कुछ और ही कहानी कह रही है।

“फाइलों से निकलती धूल और जनता की हताश निगाहें — यही बन गई है पहचान कोरिया RTO कार्यालय की।”


;”>📌 क्या आपने भी कोरिया जिले के RTO कार्यालय में ऐसे अनुभव झेले हैं? अपनी कहानी हमें भेजें — ताकि आवाज़ बने जनहित की।


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