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द लिटिल फ्लावर इंग्लिश माध्यम स्कूल पोंड़ी (बचरा) में 16 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव बड़े ही उल्लास और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया। यह दिन हमारे लिए केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक एकता का प्रतीक भी बना। विद्यालय का पूरा वातावरण भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और उनके बाल स्वरूप की मधुर छवियों से ओत-प्रोत रहा। बच्चे, शिक्षक और अभिभावक – सभी इस आयोजन का हिस्सा बने और पूरे मन से इसमें सम्मिलित हुए।

उत्सव की शुरुआत

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः सरस्वती वंदना और श्रीकृष्ण भक्ति गीत से किया गया। इसके बाद विद्यालय के प्राचार्य द्वारा जन्माष्टमी के महत्व पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने समझाया कि किस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अन्याय, अत्याचार और अंधकार को समाप्त कर धर्म की स्थापना के लिए हुआ। उन्होंने विद्यार्थियों को यह संदेश दिया कि हमें अपने जीवन में सदैव सत्य, धर्म और न्याय के पथ पर चलना चाहिए।

विद्यालय परिसर को विशेष रूप से सजाया गया था। रंग-बिरंगी झालरों, फूलों और कृष्ण की बाल लीलाओं के चित्रों से पूरा विद्यालय भक्ति और उत्साह का प्रतीक लग रहा था। छोटे-छोटे बच्चों ने भगवान कृष्ण और राधा के रूप में आकर्षक वेशभूषा धारण की। उनके मनमोहक स्वरूप ने सभी का हृदय प्रसन्न कर दिया।

पारंपरिक खेल प्रतियोगिताएँ

इस बार जन्माष्टमी उत्सव को और रोचक तथा जीवंत बनाने के लिए विद्यालय में कई पारंपरिक खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। इन खेलों ने न केवल बच्चों का मनोरंजन किया बल्कि उनमें सहयोग, साहस और संतुलन जैसी खूबियों को भी विकसित किया।

  1. आंखों पर पट्टी बांधकर जमीन पर रखी मटकी फोड़ना
    इस खेल में प्रतिभागियों की आंखों पर पट्टी बांधी गई और उन्हें निर्देशों के आधार पर जमीन पर रखी मटकी तक पहुंचना था। बच्चों ने अपनी सूझबूझ और हिम्मत से मटकी को फोड़ने का प्रयास किया। जब किसी ने सफलतापूर्वक मटकी फोड़ी तो वहां उपस्थित सभी लोग तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठे।
  2. रस्साकसी प्रतियोगिता
    यह खेल सबसे ज्यादा रोमांचक रहा। लड़कों और लड़कियों की टीमों ने मिलकर इसमें भाग लिया। सभी बच्चों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और खेल का हर क्षण उत्साह से भरपूर रहा। रस्साकसी ने बच्चों में टीम भावना और एकजुटता का अद्भुत प्रदर्शन कराया।
  3. चम्मच दौड़
    छोटे बच्चों के लिए आयोजित यह खेल मनोरंजन और संतुलन का बेहतरीन उदाहरण था। बच्चों को चम्मच में गेंद रखकर दौड़ लगानी थी। कई बार गेंद गिर भी गई, लेकिन बच्चों ने हार न मानते हुए दौड़ पूरी की। इस खेल ने हमें यह सिखाया कि धैर्य और संतुलन से ही सफलता प्राप्त होती है।
  4. जलेबी दौड़
    यह खेल बच्चों के लिए बेहद मजेदार रहा। बच्चों को थोड़ी दूरी तक दौड़कर रस्सी पर टंगी हुई जलेबी खानी थी। कई बार बच्चों ने जलेबी तक पहुंचने के लिए मजेदार कोशिशें कीं और दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान ला दी।
  5. आंखों पर पट्टी बांधकर ऊपर लटकते घड़े को फोड़ना
    यह प्रतियोगिता जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण रही। इसमें प्रतिभागियों की आंखों पर पट्टी बांधी गई और उन्हें लटके हुए घड़े को डंडे से फोड़ना था। बच्चे इधर-उधर घूमते हुए घड़े तक पहुंचने की कोशिश करते रहे। दर्शकगण उनके लिए दिशा बताते और हौसला बढ़ाते। जब आखिरकार घड़ा फूटा तो वातावरण “हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की” जैसे नारों से गूंज उठा।

शिक्षकों और स्टाफ का योगदान

इस पूरे आयोजन की सफलता में विद्यालय के सभी शिक्षकों और स्टाफ का सराहनीय योगदान रहा। उन्होंने न केवल प्रतियोगिताओं का संचालन किया, बल्कि बच्चों को लगातार प्रेरित करते रहे। खेलों की तैयारी से लेकर मंच संचालन, बच्चों की देखभाल से लेकर उत्सव की सजावट – हर जगह स्टाफ का अथक परिश्रम दिखाई दिया। उनके सहयोग के बिना यह आयोजन इतना सफल नहीं हो पाता।

विद्यार्थियों का उत्साह

बच्चों ने हर प्रतियोगिता में पूरे जोश और उत्साह के साथ भाग लिया। उनके चेहरों पर खुशी और आत्मविश्वास स्पष्ट दिखाई दे रहा था। पराजित होने पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, बल्कि खेल भावना का परिचय दिया। विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया, लेकिन असली जीत तो उन सभी बच्चों की रही जिन्होंने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया।

अंत में

इस प्रकार द लिटिल फ्लावर इंग्लिश मीडियम स्कूल, पोंडी (बचरा) में मनाया गया जन्माष्टमी उत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह सांस्कृतिक, शैक्षणिक और नैतिक मूल्यों से जुड़ा एक जीवंत अनुभव रहा। इसने विद्यार्थियों को श्रीकृष्ण के आदर्शों से परिचित कराया और खेलों के माध्यम से सहयोग, साहस, अनुशासन और खेल भावना जैसे गुणों को विकसित किया।

यह दिन सभी के लिए अविस्मरणीय रहा और विद्यालय के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज हो गया।


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