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युक्तियुक्तकरण (Rationalisation) का अर्थ है — संसाधनों का “संतुलित पुनर्वितरण” ताकि वे अधिक कुशल, प्रभावी और लागत-संवेदनशील तरीके से उपयोग किए जा सकें। स्कूल शिक्षा के संदर्भ में इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि शिक्षकों, छात्रों और भौतिक संसाधनों का ऐसा पुनर्गठन किया जाए जिससे गुणवत्ता में सुधार हो और संसाधनों की बर्बादी न हो।


📚 स्कूल शिक्षा में युक्तियुक्तकरण क्या है?

यह एक प्रशासनिक प्रक्रिया है जिसके तहत:

  1. छात्रों की संख्या कम होने वाले स्कूलों को बंद किया जाता है या
  2. उन्हें पास के बड़े स्कूलों में विलय (merge) किया जाता है,
  3. जिससे कम संख्या वाले स्कूलों के शिक्षक और संसाधन अधिक बच्चों को पढ़ा सकें।

🎯 उद्देश्य:

  • शिक्षकों की असममित नियुक्ति को ठीक करना (जहाँ ज़रूरत है वहाँ शिक्षक भेजना)
  • स्कूलों में उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग करना
  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना
  • सरकार का बजट बचाना और स्कूलों का “अधिसंख्य” बोझ कम करना

⚠️ आलोचनाएं:

  • इससे ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में स्कूलों की पहुँच घटती है
  • छात्रों को दूर जाकर पढ़ना पड़ता है, जिससे विशेषकर लड़कियाँ स्कूल छोड़ सकती हैं
  • इससे बेरोजगारी और शिक्षक-अभाव जैसे मुद्दे बढ़ सकते हैं
  • सामाजिक दृष्टिकोण से यह निर्णय कई बार संवेदनहीन और अव्यवहारिक माना जाता है

🔍 एक उदाहरण:

यदि किसी गाँव में सिर्फ 15 बच्चों वाला एक प्राथमिक स्कूल है, और पास के दूसरे गाँव में 25 बच्चों वाला स्कूल है — तो सरकार इन दोनों को मिलाकर एक ही स्कूल बना देती है, ताकि दोनों जगह के बच्चों को एक साथ पढ़ाया जा सके और शिक्षकों को एक जगह केंद्रित किया जा सके।


छत्तीसगढ़ में 10,463 स्कूलों की बंदी पर घमासान, विपक्ष ने बताया बच्चों के भविष्य के साथ क्रूर मजाक

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश के 10,463 स्कूलों को बंद करने के फैसले ने सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है। इस निर्णय को लेकर विपक्ष ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए इसे शिक्षा व्यवस्था के लिए घातक और बच्चों के भविष्य के साथ एक क्रूर मजाक बताया है। विपक्ष का कहना है कि डबल इंजन सरकार के सत्ता में आने के बाद से राज्य की शिक्षा प्रणाली पूरी तरह चरमराई हुई है।

युक्तियुक्तकरण या अव्यवस्था?

विपक्ष ने स्कूलों के युक्तियुक्तकरण (Rationalisation) की नीति को अव्यवहारिक और बच्चों के हितों के खिलाफ करार दिया। सवाल उठाए जा रहे हैं कि केवल दो शिक्षक कैसे पहली से पांचवीं कक्षा तक के सभी बच्चों को समुचित शिक्षा दे पाएंगे? यह नीति सरकार की नासमझी और अक्षमता का प्रतीक बनकर सामने आ रही है।

शिक्षा का निजीकरण या अधिकारों का हनन?

विपक्ष ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE Act) का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार देता है, लेकिन सरकार इस जिम्मेदारी को निभाने में विफल रही है। स्कूलों की बंदी को शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देने वाली साजिश बताया गया है। आलोचकों का मानना है कि अगर सरकार बच्चों को बेहतर शिक्षा देने में अक्षम है, तो उसे या तो इस्तीफा दे देना चाहिए या फिर स्कूल शिक्षा विभाग को निजी क्षेत्र को सौंप देना चाहिए।

ग्रामीण शिक्षा पर संकट

विशेषज्ञों का कहना है कि यह नीति विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुँच को सीमित कर देगी। पहले भी हजारों स्कूल बंद होने का खामियाजा ग्रामीण बच्चों, विशेषकर छात्राओं को भुगतना पड़ा है। अब दोबारा उसी दिशा में उठाया गया कदम शिक्षा के बुनियादी ढांचे को और अधिक कमजोर कर रहा है।

नीति वापसी की मांग और संभावित आंदोलन

विपक्ष ने इस नीति को अविलंब वापस लेने की मांग की है और चेतावनी दी है कि यदि सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करती, तो इसे जनता के बीच लेकर व्यापक जनआंदोलन खड़ा किया जाएगा। “हम लाखों बच्चों के भविष्य को अंधेरे में नहीं जाने देंगे,” विपक्ष की ओर से यह स्पष्ट संदेश दिया गया है।


शिक्षा” एक राष्ट्र की रीढ़ होती है, और जब शिक्षा व्यवस्था पर संकट आता है, तो उसका प्रभाव अगली पीढ़ी तक पहुँचता है। छत्तीसगढ़ में स्कूलों की बंदी का यह मुद्दा न केवल शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक विमर्श का केंद्र भी बन चुका है।

 

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