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अमेरिकी नागरिकता पाने वाले पहले भारतीय कौन थे? जानिए दिलचस्प कहानी!

अमेरिका में भारतीयों की मौजूदगी आज किसी से छिपी नहीं है। राजनीति से लेकर टेक्नोलॉजी, बिजनेस और शिक्षा तक, हर क्षेत्र में भारतीय मूल के लोग अपनी छाप छोड़ रहे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पहला भारतीय कौन था जिसे अमेरिकी नागरिकता मिली थी?

क्या ट्रंप प्रशासन बदलेगा नागरिकता नियम?

जब डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तो उन्होंने जन्मसिद्ध नागरिकता (Birthright Citizenship) को खत्म करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। हालांकि, इस फैसले को फिलहाल एक संघीय न्यायाधीश ने रोक दिया है, लेकिन यह कदम अमेरिकी नागरिकता कानूनों को सख्त करने की उनकी नीति का हिस्सा था।

वर्तमान में, अमेरिका में 54 लाख से अधिक भारतीय रहते हैं, जो कुल जनसंख्या का लगभग 1.47% हैं। इनमें से दो-तिहाई अप्रवासी हैं, जबकि 34% अमेरिका में ही पैदा हुए हैं। यदि ट्रंप का प्रस्ताव लागू हो जाता, तो अमेरिका में अस्थायी कार्य या पर्यटक वीज़ा पर रहने वाले भारतीय नागरिकों के बच्चों को नागरिकता नहीं मिलती।

अमेरिका में भारतीयों की सफलता की कहानी

आज भारतीय मूल के लोग अमेरिका में शीर्ष पदों पर हैं। गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला, और अमेरिका में कई राजनेताओं की जड़ें भारत से जुड़ी हैं। लेकिन इस यात्रा की शुरुआत कब और कैसे हुई?

पहले भारतीय नागरिक बने भीकाजी बलसारा की प्रेरणादायक कहानी

भीकाजी बलसारा, अमेरिका की नागरिकता प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे। लेकिन यह सफर आसान नहीं था। 20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिकी नागरिकता हासिल करना बेहद कठिन था, खासकर एशियाई मूल के लोगों के लिए।

भीकाजी बलसारा कौन थे?

भीकाजी बलसारा बंबई (अब मुंबई) के एक कपड़ा व्यापारी थे। 1900 के दशक में, अमेरिका का 1790 प्राकृतिककरण अधिनियम (Naturalization Act) केवल “स्वतंत्र श्वेत लोगों” को नागरिकता की अनुमति देता था। इसलिए, किसी भी गैर-यूरोपीय व्यक्ति के लिए यह लगभग असंभव था।

1906 में बलसारा ने अमेरिकी नागरिकता के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। उन्होंने कोर्ट में यह दलील दी कि पारसी समुदाय इंडो-यूरोपियन समूह से आता है और इसलिए उन्हें श्वेत माना जाना चाहिए। न्यूयॉर्क के सर्किट कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन उन्हें उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति दी गई।

1910 में, न्यूयॉर्क के साउथ डिस्ट्रिक्ट के जज एमिल हेनरी लैकोम्बे ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें अमेरिकी नागरिकता प्रदान की। यह फैसला ऐतिहासिक था, क्योंकि इसने अन्य भारतीयों के लिए भी नागरिकता पाने का रास्ता खोला।

भारतीय प्रवास पर अमेरिकी कानूनों का प्रभाव

हालांकि, 1917 के इमिग्रेशन एक्ट (Immigration Act) के कारण भारतीय प्रवास में गिरावट आई। लेकिन पंजाबी आप्रवासियों ने मैक्सिकन सीमा के जरिए अमेरिका में प्रवेश जारी रखा।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, भारतीयों के लिए अमेरिका के दरवाजे फिर से खुले।

  • 1946 का लूस-सेलर अधिनियम – हर साल 100 भारतीयों को अमेरिका में बसने की अनुमति दी।
  • 1952 का प्राकृतिककरण अधिनियम – 1917 के प्रतिबंधों को हटा दिया, लेकिन भारतीय अप्रवासियों की संख्या को सीमित रखा।
  • 1965 के बाद – भारत से हर साल औसतन 40,000 लोग अमेरिका आने लगे।
  • 1990 के दशक के बाद – यह संख्या तेजी से बढ़कर 90,000 प्रति वर्ष तक पहुंच गई।

आईटी बूम और भारतीयों की नई लहर

21वीं सदी में भारतीयों के अमेरिका जाने की संख्या में भारी इजाफा हुआ, खासकर आईटी क्रांति के कारण। बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई और पुणे जैसे शहरों से बड़ी संख्या में आईटी प्रोफेशनल अमेरिका जाने लगे।

  • एच-1बी वीजा पर जाने वालों में 80% से अधिक भारतीय होते हैं।
  • हर साल 500,000 भारतीय छात्र अमेरिका के कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ने जाते हैं।

निष्कर्ष

आज भारतीय-अमेरिकियों की सफलता की कहानियां हर जगह सुनाई देती हैं। लेकिन यह यात्रा भीकाजी बलसारा जैसे लोगों की बदौलत शुरू हुई, जिन्होंने पहली बार नागरिकता के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी।

अगर यह ऐतिहासिक फैसले न होते, तो शायद आज अमेरिका में भारतीयों की इतनी मजबूत उपस्थिति नहीं होती। यह कहानी न केवल संघर्ष और सफलता की है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भारतीयों ने हर परिस्थिति में खुद को साबित किया है! 🚀



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