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तीन महीने का चावल, लेकिन सिर्फ एक महीने का चना-शक्कर! ग्रामीणों में गहराता असंतोष

इंदु कश्यप  |जिला -कोरिया 

छत्तीसगढ़ शासन की जनकल्याणकारी योजनाएं अगर जमीनी स्तर पर आधी-अधूरी लागू हों, तो उसका असर न केवल आम जनजीवन पर पड़ता है, बल्कि शासन की मंशा पर भी सवाल खड़े करता है। जनपद के अंतर्गत आने वाले कई ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ ऐसा ही देखने को मिला है, जहां राशन वितरण को लेकर ग्रामीणों में जबरदस्त नाराजगी है। वजह है – तीन महीने का चावल तो दे दिया गया, लेकिन चना और शक्कर केवल एक माह का ही मुहैया कराया गया।

“तीन महीने का चावल, चना-शक्कर एक महीने का

ग्रामीणों का सवाल सीधा है –

“अगर चावल तीन माह का मिला है, तो चना और शक्कर क्यों नहीं?”

राज्य शासन द्वारा अंत्योदय और प्राथमिक परिवारों को हर महीने चावल, शक्कर और चना दिए जाने की योजना है। जब वितरण तीन माह का किया गया, तो स्वाभाविक रूप से ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उन्हें सभी राशन सामग्री उसी अनुपात में प्राप्त होगी। लेकिन जब वे राशन लेने पहुंचे, तो केवल चावल तीन महीने का मिला और शेष सामग्री सिर्फ एक माह की।

ग्रामीणों का आरोप: आधा अधूरा वितरण, प्रशासन बेखबर

जनता का कहना है कि यह व्यवहार दोहरा और अन्यायपूर्ण है। कई गांवों में वितरण पर्ची पर स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया कि सामग्री कम क्यों दी जा रही है। न ही कोई सूचना दी गई कि बाकी दो महीनों का चना और शक्कर कब दिया जाएगा या क्यों रोका गया है।

“यह कैसा सिस्टम है? हमें चावल तो तीन महीने का मिल गया, पर चना और शक्कर एक महीने का? बाकी दो महीने का माल कहां गया?”
रामकुमार यादव, हितग्राही

शोषण या लापरवाही?

ग्रामीण इसे “शोषण की रणनीति” मान रहे हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन और वितरण एजेंसियां एक-दूसरे की जिम्मेदारी पर उंगली उठा रहे हैं, लेकिन इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। कुछ लोगों ने तो यहां तक आशंका जताई है कि कहीं यह खाद्यान्न कालाबाज़ारी या अन्य क्षेत्रों में ट्रांसफर तो नहीं किया गया?

“अगर वितरण सूची में तीनों सामग्री का उल्लेख है, तो हमें क्यों सिर्फ एक ही चीज पूरी मिली?”
गायत्री साहू, महिला हितग्राही

कोई पारदर्शिता नहीं, कोई जवाबदेही नहीं

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल पारदर्शिता को लेकर उठाया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें न तो पहले से कोई जानकारी दी जाती है, न ही किसी प्रकार का स्पष्ट मापदंड समझाया जाता है। यहां तक कि ग्राम सचिव या राशन दुकानदार भी केवल यही कहकर टाल देते हैं कि “ऊपर से आदेश आया है।”

क्या यह जवाब पर्याप्त है?
क्या “ऊपर से आदेश” कह देने मात्र से गरीब जनता की भूख मिट जाएगी? क्या इसी प्रकार की अपारदर्शी व्यवस्था के सहारे शासन कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहा है?

क्या कहता है नियम?

छत्तीसगढ़ शासन की खाद्य सुरक्षा योजना के तहत अंत्योदय कार्डधारियों को प्रति व्यक्ति 35 किलो चावल, प्रति राशन कार्ड 1 किलो चना और 1 किलो शक्कर प्रति माह मिलने का प्रावधान है। यदि किसी माह में वितरण नहीं हुआ हो, और एक साथ तीन माह का वितरण किया जा रहा हो, तो तीनों वस्तुओं की मात्रा उसी अनुपात में देनी चाहिए।

यदि ऐसा नहीं हुआ है, तो यह सीधा उल्लंघन है और अधिकारियों की जवाबदेही बनती है।

अब क्या चाहते हैं ग्रामीण?

ग्रामीणों ने तीन बड़ी मांगें उठाई हैं:

  1. पूरा राशन – तीनों माह का चना और शक्कर तुरंत उपलब्ध कराया जाए।
  2. जांच – यह स्पष्ट किया जाए कि बाकी सामान कहां गया और किसके आदेश पर रोका गया।
  3. पारदर्शिता – वितरण प्रक्रिया को सार्वजनिक सूचना पटल पर अंकित किया जाए ताकि कोई भ्रम न रहे।

प्रशासन की चुप्पी बनी चिंता का कारण

अब तक जनपद प्रशासन या खाद्य विभाग की ओर से इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बयान सामने नहीं आया है। जबकि स्थिति यह है कि ग्रामीण अब जनप्रतिनिधियों और स्थानीय प्रशासन से शिकायत करने की तैयारी कर रहे हैं।

यदि जल्द ही कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला जिला स्तर तक पहुंच सकता है, और शासन की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।


गरीब जनता के हक का सवाल है

इस मामले ने न केवल खाद्यान्न वितरण प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि शासन की योजनाओं की जमीनी हकीकत पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर शासन सचमुच गरीबों के लिए काम कर रहा है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी हितग्राही किसी भी योजना के तहत “आधा-पूरा” लाभ न पाए।

यह केवल चावल, चना और शक्कर की बात नहीं, बल्कि विश्वास और अधिकार की लड़ाई है – और यह लड़ाई अब ग्रामीण खुद लड़ने को तैयार हैं।


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