बैकुंठपुर की जीवनदायिनी गेज नदी में घुलता जहर, 20,000 लोग दूषित पानी पीने को मजबूर!
बैकुंठपुर, कोरिया: एक समय नगरवासियों के लिए जीवनदायिनी कही जाने वाली गेज नदी अब ज़हर का स्रोत बन चुकी है। नगर प्रशासन की अनदेखी और लापरवाही के चलते यह नदी कचरे, गंदगी और जहरीले अपशिष्ट का डंपिंग ग्राउंड बन गई है। हालत यह है कि नगर पालिका क्षेत्र के 20 वार्डों के करीब 20,000 लोग और आसपास के हजारों ग्रामीण गंदा और दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं।
प्रशासन की उदासीनता, जनता पर संकट
नगरवासियों की कई शिकायतों के बावजूद प्रशासन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया है। नगर पालिका परिषद में नेता प्रतिपक्ष अन्नपूर्णा प्रभाकर सिंह ने बार-बार इस मुद्दे को उठाया, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने इसे नज़रअंदाज कर दिया। बीते वर्ष गर्मियों में नदी का जलस्तर इतना गिर गया था कि लोगों को कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ा—फिर भी कोई वैकल्पिक जल स्रोत नहीं बनाया गया।
नदी में बह रहा मल-मूत्र और मेडिकल कचरा!
शहर के घरेलू और सार्वजनिक शौचालयों का गंदा पानी बिना किसी ट्रीटमेंट के नदी में बहाया जा रहा है। हर दिन हजारों कुंटल कचरा, मेडिकल वेस्ट, मल-मूत्र और मांस के टुकड़े इस नदी में समा रहे हैं। नगर के कचरा प्रबंधन केंद्र (SLRM सेंटर) द्वारा भी नदी किनारे ही कूड़ा फेंका जा रहा है, जिससे हवा और बारिश के पानी से यह सीधे नदी में मिल जाता है।
खतरनाक स्थिति:
✅ अस्पतालों से निकलने वाला इंजेक्शन, पट्टियां, खून से सने कपड़े और अन्य मेडिकल वेस्ट नदी में मिल रहा है।
✅ प्लास्टिक और केमिकल युक्त कचरा और गंदगी पानी को ज़हरीला बना रही है।
✅ टाइफाइड, डायरिया, पीलिया, पेट संक्रमण और त्वचा रोग फैलने लगे हैं, जिनका शिकार सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग हो रहे हैं।
आस्था को ठेस, आचमन के लायक नहीं बचा गेज नदी का जल
छठ पूजा, गणेश विसर्जन, सावन की पूजा, मरनी-भागवत और ग्राम देवताओं की आराधना जैसी धार्मिक परंपराओं में इस नदी का जल पवित्र माना जाता था। लेकिन अब श्रद्धालु आचमन तक करने से डरते हैं। जो नदी कभी श्रद्धा का केंद्र थी, आज उसमें गंदगी और ज़हर बह रहा है!
NGT के नियमों की खुलेआम धज्जियां!
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के सख्त नियमों के बावजूद नगर प्रशासन पूरी तरह बेखबर है। नियमों के अनुसार—
🚫 किसी भी जल स्रोत में बिना ट्रीटमेंट के गंदा पानी नहीं छोड़ा जा सकता।
🚫 मेडिकल और जैविक कचरे के विशेष प्रबंधन की व्यवस्था होनी चाहिए।
🚫 नदी में प्लास्टिक, कचरा और हानिकारक अपशिष्ट फेंकना गैरकानूनी है।
लेकिन नगर प्रशासन इन नियमों को ताक पर रखकर नगरवासियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा है।
अब सवाल यह उठता है:
❓ क्या प्रशासन अब भी इस गंभीर समस्या पर आंखें मूंदे रहेगा?
❓ क्या नगरवासियों को खुद सड़कों पर उतरकर अपनी जीवनदायिनी गेज नदी को बचाने की लड़ाई लड़नी होगी?
❓ क्या सरकार और प्रशासन जल संकट से पहले कोई ठोस कदम उठाएंगे?
समाधान क्या हो सकता है?
✔ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तुरंत लगाया जाए।
✔ नदी किनारे कचरा डंप करने पर रोक लगाई जाए।
✔ जल संरक्षण और नदी सफाई अभियान चलाया जाए।
✔ नगरवासियों को शुद्ध पेयजल का वैकल्पिक स्रोत दिया जाए।
नगरवासियों की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं सहा जाएगा!
नगर पालिका परिषद की नेता प्रतिपक्ष अन्नपूर्णा प्रभाकर सिंह ने इस गंभीर स्थिति को लेकर कलेक्टर और नगर प्रशासन को पत्र लिखकर तत्काल समाधान की मांग की है। उन्होंने कहा—
“हर साल करोड़ों रुपये जल आपूर्ति और सफाई व्यवस्था पर खर्च होते हैं, फिर भी ठोस समाधान क्यों नहीं निकाला जाता? नगरवासियों की सेहत से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा!”
अगर अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो गेज नदी इतिहास बन जाएगी, और नगरवासी अपनी ही लापरवाही की सजा भुगतने को मजबूर होंगे।